मैं ख़ुश हूं
मै खुश हूं !
ये देख के ,
जाग गए नवयुवक जो सोए थे
हकीकत की नहीं ,सपनों की दुनिया में जो खोए थे
अन्याय के खिलाफ थे अप्रत्यक्ष
प्रत्यक्ष हों गए
परिवर्तन समाज में करने के लिए , महापुरुष सद्रश्य हो गए
प्रगाढ़ प्रसन्नता से मै उक्त हूं
मै खुश हूं
मै खुश हूं!
ये देख के,
हो गया डर तानाशाही निर्लज्ज के अंदर
जो चलाता था लोगों पे वह भय का खंजर
हो गया आभास उसकी अपनी औकात की
याद रहेगा हमेशा उसको उस रात की
ये मंजर देख के आनन्दता से परिपर्ण हूं
मैं ख़ुश हूं!
ये सोंच के ,
रहेगें संगठित अपने............
*✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️*
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