गीत - परधानी चलईहव

 गांव  माँ रहिके  परधानी  चलईहव, 

हम ना  जानी  की  छुरी   चलईहव


मीठी  बतियन  से सबका  लुभायो 

दीदी, अम्मा कहिके  वोट डलवायो

 

बनके परधान दोहरी  नीति दिखायो

अत्याचार गउवा मा बढ़ायो 


अवसर वादी तुम निर्लज्ज ही रहिहव  

हम  ना  जानी की............... 


दरवाजे का खरंजा ना लगवायो 

सी सी टीवी टटिया मा लगायो 


जनता कै  टट्टी भी  खायो 

आपनी बढ़ाई पुरवा मा गायो 

झूठै अपना का महान बतइहाव 


हम ना जानी की............ 


जाइ परधानी  तो, फिर  का करिहाव 

खिसिया के फिर खिसै  बगरिहाव 


सबकी नजरन से  मुँह का  छिपाइहाव 


हम ना जानी की............ 


           ✍✍   संदीप कुमार ✍✍


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