मैं क्या लिखूं
गर्मी के मौसम में सूरज का तपना
टप-टप पसीने में भीग के ये कहना
उफ़!
आज कितनी ज़्यादा है गर्मी
कैसे करूं बातों में नरमी
किसी की तरक्की को देख के क्या मैं जलूं
उफ़! हाय ये गर्मी...
मैं क्या लिखूं
बरसात के मौसम में जब बादल हैं बरसते
मन प्रसन्न हो उठता जो पानी को हैं तरसते
हो जाती है सारी पृथ्वी ये ठंड
जैसे सूरज का टूट गया हो घमंड
बुलबुले पानी की तरह क्या मैं भी बहूं
मैं क्या लिखूं
सावन आते ही वृक्ष हो जाते हरे
नए पौधे भी झूम के हो जाते खड़े
पुष्पों को देख के खिलता है मन
जब हो जाती बारिश पूरी संपन्न
पंछियों के संग क्या मैं भी उड़ूं
मैं क्या लिखूं
ठंडी में हाथ-पांव हो जाते जकड़
जैसे ढीली हो जाती हैं बुढ़ापे में मांसपेशियों की पकड़
अकड़ू लोगों के बीच क्या मैं भी अकड़ूं
मैं क्या लिखूं
पतझड़ में पेड़ों से पत्ते झड़ जाते हैं
जैसे अपने ही एक-एक कर के कट जाते हैं
प्रकृति की तरह ही है, ये जीवन
हर रंग, हर रूप, हर मौसम में है अपनापन
जब सबको एक दिन होना है मिट्टी में ही विलीन
तो लड़ाई झगड़े में क्यों लोग होते है लीन
अब आप ही बताएँ
मैं क्या समझूं
मैं क्या लिखूं
मैं क्या लिखूं
✍️✍️ संदीप कुमार*✍️✍️
( रजौली, रायबरेली )
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