सावन सबको भाए
बादल हल्के स्वर में गरजे
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे
फूल खिल रहे रंग-बिरंगे
इंद्रधनुष दिखे सतरंगे
चिडियां चहचहातीं आसमान में
खरगोश कूदे अपनी तान में
चातक, सारस, तोता, मैना,
चकवा-चकवी लड़ाएं नैना
मोरों का है सुंदर नृत्य
प्राकृतिक परिवर्तन है सत्य
बागों में कोयल मीठे सुर में गाए
सावन सबको भाए
पीपल की सरसराहट बोले
बादल की गड़गड़ाहट डोले
झूला पड़ा है गांव-गली में,
आओ चलो इसी खुशी में
लड़के-लड़कियां झूला झूले
हंसी- मस्ती में सब झूमें
झूलते प्रेमी को देख प्रेमिका
नैना भर मंद-मंद मुसकाए
सावन सबको भाए
आम की गठीली से बच्चे,
सीटी बना बजाएं
रगड़-रगड़ के पेड़ से अवधी में यूं गाएं
आंबे के तांबे के, खाटूवा बादमें के
हमाय पपीहिरी बाजे — भों...पो... !
भों...पो...
बच्चे हंसके आपस में प्रफुल्लित हो जाएं
सावन सबको भाए
विरह से व्यथित घर की बहू
पति को खरी-खोटी सुनाए
सब आए परदेशी घर में आप क्यों नहीं आए
तुम्हारी दो टके की नौकरी में
मेरा लाखों का सावन जाए
सावन सबको भाए
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें