भाग- 2 मैं क्या लिखूं
अब मैं क्या क्या लिखूं
सरकार की गंदी राजनीति लिखूं
या उनके झूठी अनीति लिखूं
अब मैं क्या लिखूं
हर विभाग में चल रहा भ्रष्टाचार
सद्भाव संवेदना सबका हुआ संहार
लेते हैं लोगों से सुविधा शुल्क
क्या ऐसे ही बदल रहा है मेरा ये मुल्क
नौकरी का स्तर क्यों गिर रहा
रोटी के लिए मज़दूर शहरों में क्यों भटक रहा
अब क्या नेता के वादे लिखूं
या झूठ की लिपिस्टिक में सजे इरादे लिखूं
अब मैं क्या लिखूं
हर तरफ है जाति का ही वर्चस्व,
जातिवादियों के फिसल रहे वक्तव्य
आए दिन होते रहते दलितों पर अत्याचार
अपने हालतों से है वे लाचार
क्या उनकी पीड़ा लिखूं
या उनके सपनों की
दबिश चीखें लिखूं
अब मैं क्या लिखूं
सोशल मीडिया पर दिन-रात झूठ परोसा जाता है,
हर झूठ का मीम बनता है और सच दबाया जाता है
झूठ का ढांढस सबको भाता है,
सच कहो तो देशद्रोह का ठप्पा लग जाता है
अब क्या प्रेम की बात लिखूं,
या किसी मज़लूम की मात लिखूं
अब मैं क्या लिखूं
क्या मैं अब हार का मातम लिखूं,
या एकजुट होकर ललकार लिखूं
उठो मेरे भाई, बहनों,समय रहते सब जगो
अपने हक़ अधिकार की खातिर आवाज़ बनो
रहो संगठित मत डरो किसी तरह के डर से,
सपने पूरे होंगे चलते रहो अपने पथ पे
तो क्या
अब इक नई शुरुआत लिखूं,
या फिर गप्प कहानी
मनचलों की जुबानी लिखूं
'अब मैं क्या लिखूं?'
मैं क्या लिखूं?
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