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आस्था या फिर अंध भक्ति

 🌷🌼रजौली मेरा गाँव🌼🌷 नखरौली  नामक गांव  में आस्तिकों की  संख्या,  पहले  की  अपेच्छा कुछ ज्यादा ही  हो गयी  थी  चारों  तरफ  धर्म का  ही  बोलबाला  था तरह तरह  के कर्मकांड आये दिन होते  थे.  हिंदू, मुस्लिम, सिख़., ईसाई, आदि सभी  धर्म अपने   को ही  सर्वश्रेठ  समझते  थे   और झाड़ फूँक में भी  विश्वास  रखते  थे  गाँव में किसी  की माँ आस्वस्थ हैं.  आगे  लखन -  भाई  जितेंद्र  कहाँ जा रहे  हो,    काफी  परेशान दिखाई  दे रहे  हो,  आखिर बात क्या  है.  जीतेन्द्र -  क्या  बताऊँ भाई !मेरी  माँ की तबियत सही नहीं हो  रही  है. गांव के  लोग  भूत  प्रेत  का  चक्कर बता  रहें हैं  लखन -  भाई  गोबरेश्वर के  मंदिर गए की नहीं  जितेंद्र - गया था भाई, हवन पूजन करवाया, ब्राह्मणों को खाना खिलाया दान भी  दिया....

गीत - परधानी चलईहव

 गांव  माँ रहिके  परधानी  चलईहव,  हम ना  जानी  की  छुरी   चलईहव मीठी  बतियन  से सबका  लुभायो  दीदी, अम्मा कहिके  वोट डलवायो   बनके परधान दोहरी  नीति दिखायो अत्याचार गउवा मा बढ़ायो  अवसर वादी तुम निर्लज्ज ही रहिहव   हम  ना  जानी की...............  दरवाजे का खरंजा ना लगवायो  सी सी टीवी टटिया मा लगायो  जनता कै  टट्टी भी  खायो  आपनी बढ़ाई पुरवा मा गायो  झूठै अपना का महान बतइहाव  हम ना जानी की............  जाइ परधानी  तो, फिर  का करिहाव  खिसिया के फिर खिसै  बगरिहाव  सबकी नजरन से  मुँह का  छिपाइहाव  हम ना जानी की............             ✍✍   संदीप कुमार ✍✍

याद कर रहा हूं

वंदू मै तुझको याद कर रहा हूं आ जाओ मेरे जिंदगी मेे , खुदा से फरियाद कर रहा हूं वंदू.......  तुम्हारे होठों की वो हल्की सी मुस्कान अटकी थी जो उसमे मेरी जान तुम्हारे बालों की घनघोर घटा यौवन की वो मदमस्त अदा तुम्हारी उस छवि को दोस्तो को बता रहा हूं वंदू....... मेला देखने गए थे जब हम साथ पकड़ रखा था तुमने मेरा हाथ चाहे हो जाए कोई बात रहूंगी हमेशा तुम्हारे साथ मेले के उस दृश्य को कांपी में बना रहा हूं वंदू......... नहीं आ पाऊंगा गांव अभी इस बात मेे मत रोना, जिंदगी सबकी बदल गई ऐसा प्रकोप मचा रहा कोरोना  संदीप के साथ मिल के गीत बना, गा रहा हूं  वंदू.......   ✍संदीप कुमार✍

आओ बच्चों पढ़ा जाए

आओ बच्चों पढ़ा जाए संगे मिलकर पढ़ा जाए आओ बच्चों........... अपने घर के अंदर रहके लॉक डाउन नियम का पालन करके पापा से मोबाइल लेकर भैया से पेन कॉपी लेकर सोशल मीडिया पर जाया जाए आओ बच्चों ........ यूट्यूब पर अपना सब्जेक्ट खोजो लिख ना पाओ तो मैक मेे बोलों मैं तो पढूंगा ए, बी, सी डी क,ख, ग,घ ! अ, आ, इ, ई गिनती भी अब सीखा जाए आओ बच्चों..... प्रश्न मेरे दिमाग में आया कौतूहल मेरे मन में लाया हमारी पृथ्वी कैसी है? कैसे हम इसमें रहते हैं? सर्दी गर्मी कैसे सहते हैं? गूगल सर्च में जाया जाए आओ बच्चों पढ़ा जाए    ✍संदीप कुमार✍

मैं ख़ुश हूं

मै खुश हूं ! ये देख के , जाग गए नवयुवक जो सोए थे  हकीकत की नहीं ,सपनों की दुनिया में जो खोए थे अन्याय के खिलाफ थे अप्रत्यक्ष  प्रत्यक्ष हों गए परिवर्तन समाज में करने के लिए , महापुरुष सद्रश्य हो गए प्रगाढ़ प्रसन्नता से मै उक्त हूं मै खुश हूं मै खुश हूं!  ये देख के, हो गया डर तानाशाही निर्लज्ज के अंदर जो चलाता था लोगों पे वह भय का खंजर हो गया आभास उसकी अपनी औकात की याद रहेगा हमेशा उसको उस रात की ये मंजर देख के आनन्दता से परिपर्ण हूं मैं ख़ुश हूं! ये सोंच के , रहेगें संगठित अपने............  *✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️*

हाँ! मै मजदूर हूँ

हाँ! मै मजदूर  हूँ लोहा  गला के उसका आकार हूँ बदलता  सोना पिघला  के,सौन्दर्य युक्त हूँ  करता स्टील से उपयोगी  बरतन मैं बनाता पीतल के वस्तुओं  से, हूँ  घर  को सजाता प्लास्टिक की तरह,नस्टता मैं दूर हूँ  हाँ! मै मजदूर  हूँ पत्थर को काट के रास्ता मै बनाता  कुंआ  खोद के पानी हूँ  निकालता  गर्मी हो या सर्दी मैं कभी नहीं हारता  गन्तव्य की ओर हूँ,हमेशा पैरों बढाता  बडे-बडे लोगों की तरह, राजसी  सुखों से दूर हूँ  हाँ! मै मजदूर  हूँ कल कारखानों की,है वास्तविकता कुछ ऐसा  रहता माहौल उनका हांथी  के दांत जैसा बारह,सोलह घंटे,कराते रहते काम मेहनत करा के अच्छा,देते नहीं  हैं  दाम कुछ कह नहीं पाता, अपने  हालातों से मजबूर हूँ  हाँ! मै मजदूर  हूँ ✍️✍️सन्दीप कुमार ✍️✍️

किसान हूं

किसान हूं किसान मै,देश का किसान हूं लोग कहते हैं मुझको मै सबसे महान हूं किसान हूं.......... कड़ी मेहनत से, खेतों में हूं फसल को उगाता बागवानी लगा के, हूं मै पेड़ों को बढ़ाता वृछ लगा के ,उन्हें देते है जल बच्चे, बुढ़े सब!उनके खाते हैं फल उपभोक्ताओं की मै जान हूं किसान हूं............ बैलगाड़ी गयी, आया है ट्रैक्टर तिफरा हल भी गया , आया कल्टीवेटर बदलाव देख के मै हैरान हूं किसान हूं............ हमें जब समय पर!बीज, खाद नहीं मिलता किए पर सारे हमारे पानी है फिरता गरीब है जो भाई हमारे, कर्जदार होते फसल नस्ट होती तो बहुत वे रोते इस संघर्षमय जीवन से, हैं भाई हमारे लड़ते हार जाते हैं जब वें आत्महत्या भी करते सरकार की व्यवस्था देख के मै , सोंच के परेशान हूं किसान हूं........   *✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️*

प्रकर्ती का दृश्य

  प्रकृति का दृश्य ये , प्रकृति का दृश्य बहुत ही मनमोहक है, ये प्रकृति का दृश्य छम छम बरसते घने काले बादल खुशी से झूमते कुमुदिनियों का ये दल पपिहा बारिश की है बूंद पता हंस प्रसन्नता से है गीत गाता मयुरों का है कितना सुन्दर ये दृश्य प्रकृति का दृश्य.......... रंग बरंगे हैं फूल खिलें भंवरे फूलों से आकर हैं मिलें हरियाली धरती पे खूब है छायी मानो अभी- अभी श्रंगार कर के आयी आसमां को छु रहें ये अशोक के वृक्ष प्रकृति....... बह रही मस्तानी हवा ये शुद्ध संदीप दृश्य देख के हो गए मुग्ध बैठे बैठे मन में रहें यह सोंच हैं कितने स्वार्थी ये दुनियां के लोग प्रकृति की धरोहर हैं, नस्ट ये करते रातों दिन सिर्फ अपना हैं स्वार्थ सिद्ध करते है सब झूठा सिर्फ प्रकृति ही है सत्य प्रकर्ती का दृश्य........     *✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️*

कहानी=चुनाव सरपंच का

आम की बाग से घिरा हुआ। जिसके चारों तरफ हर प्रकार के पेड़ पौधों और झाड़ियां अपनी खूबसूरती बढ़ती हैं, जिसके किनारे गुलाब, चमेली गुलमोहर, कनेर, आदि पुष्प अपनी महकता से वायु को सुंगंधित करती हैं,  ऐसा एक छोटा सा गांव नखरौली था। नखरौली ग्राम सभा में नौ गांव सामिल थे। वहां के लोग खेती करते तथा बागवानी  लगाते थे। उस गांव में खुशियां ही खुशयां थी। लेकिन प्रकृति के परिवर्तन के अनुसार वहां धीरे धीरे की खुशियां  बिखरने लगी गांव में जो नहर आ रहा था, जिससे कृषि में अच्छी उपज हो रही थी अब बंद हो गई। गांव की सड़के नल आदि  जर्जर हो गए। गांव के लोगों ने मिलकर  पुनः गांव को चमन बनाने के लिए ठानी। सरपंच पद पर एक अच्छे व्यक्ति को चुनने का निश्चय किया ,जो गांव के साथ साथ पूरे ग्राम सभा को विकसित, करे नई योजना लाए और लोगों को लाभ मिले। गांव में ही एक बहादुर जय सिंह नाम का आदमी था,वह होशियार,और चालाक , साथ साथ जागरूक भी था। लोगों ने उसे सरपंच पद पर खड़ा किया और वोंटे भी दिया । बहादुर जय सिंह ६ लोगों को पछाड़ के सरपंच पद पर विजय प्राप्त की। जय सिंह सरपंच पद संभालते ही अपना क्रूर ,दोहरा...

"कैसे भूल जाऊं"

 "कैसे भूल जाऊं" कैसे भूल जाऊं,कैसे भूल जाऊं संग बिताए पल को कैसे भूल जाऊं क्लास में देखा था सुंदर मुखड़ा चुपके से फेंका था कागज का टुकड़ा छुप छुप के गार्डन में मिलते थे हम  मीठी बाते प्यार की करते थे हम उस पल के लम्हों को कैसे बताऊं कैसे भूल जाऊं........ फेसबुक की दिचस्प बाते व्हाट्सऐप पे गुजारे थे, आधी आधी राते इमो की वो वीडियो कलिंग गलती पे दी थी मैंने वार्न्निग इंस्टाग्राम मेे चुटकुले कैसे बनाऊ कैसे भूल जाऊं......... तेरे बिना जिंदगी अब ही गई वीरान मिट गया तेरे बिन,मेरा नामो निशान तेरी जुदाई के आंसू गटक रहा हूं पागलों की तरह भटक रहा हूं तू ही बता अब मै किधर जाऊं कैसे भूल जाऊं.......... ✍सजा संदीप कुमार✍