बोलना ही पड़ेगा

लिखना ही पड़ेगा 

पुरानी, घिसी-पीटी रीतियों पर 
उनसे   उपजे  अत्याचारों   पर 
मानव  के  टूटते  व्यवहार  पर 
लिखना ही पड़ेगा।  

सोचना ही पड़ेगा 
क्यों   बढ़ी  है   दिलों   में  दूरियाँ
क्यों सताती है सबको मजबूरियाँ
क्यों खो रहे हैं हम संवेदनाएँ 
सोचना ही पड़ेगा 

सुनना ही पड़ेगा 
अपनी आलोचनाएँ, अपने दोष  
जब खुद में हों कमियाँ  
तो उसे स्वीकारना ही पड़ेगा
सुनना ही पड़ेगा


आवाज़ उठानी ही पड़ेगी 
अत्याचार के विरुद्ध
भ्रष्टाचार के  विरुद्ध 
और देश  में पल रहे  
असामाजिक तत्वों के विरुद्ध
आवाज उठानी ही पड़ेगी

अगर चाहिए हमें 
वैज्ञानिक सोच
आदर्श  जीवन 
सुशिक्षित नागरिक 
तो बोलना ही पड़ेगा,  
असत्य के विरुद्ध
झूठे प्रोपेगंडा के विरुद्ध
हमें बोलना ही पड़ेगा


      ✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️
      (    रजौली, रायबरेली )

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