पीते शराब जब लोगबाग


दारू  जब   जाती है    अंदर
मचाती है अस्थियों में  बवंडर 
रक्त संचार हो  जाता है   तेज
किसी बात का नहीं रहता खेद

बाते करती है  परछाई
बाहर आती  हर सच्चाई
कभी रोते कभी हंसते है
अपनी बीती व्यक्त करते है

अलापते है एक नया राग
पीते शराब जब लोग बाग 

 प्रेमी को ,प्रेमिका जब आती याद 
 पीते दुख में करते करते विलाप 
प्यार  में   मिलता है क्यों  धोखा 
क्यों  मैने  पह  पहले नहीं  सोंचा 

पीते  है  मित्र  होते  आनंदित 
ठहाकों से माहौल करते सुगंधित
पीने  के बाद सब हो जाते धूरन्धर
लज्जा  भय  आते  नहीं  अंदर

 
कुछ पीके  पड़े कीचड़ की ,गलियों में 
खुद को महसूस करते पुष्पों की वादियों में 
करते है वो जोरों से गर्जन 
कुत्ते उन पर करते मूत्र विर्सजन

कीचड़ में लथपथ लगते जैसे नाग
पीते  शराब  जब  लोग  बाग 

सफेदाय नेता पीते शाम को 
सोडा डाल के बनाते जाम को
गांव में आकर करते है ड्रामा
अति नीच रहते इनके कारनामा

कोई नहीं बोलता इनसे 
क्योंकि लगा सकते है ये घर में आग 
पीते है शराब जब लोग बाग 

 दारू  लगती थोड़ी देर के लिए अच्छी
ये  बात  कहता  मै  बिल्कुल सच्ची
दारू से न जाने कितने  बर्बाद हुए परिवार 
बड़ा घातक होता है इसका वार 

लगाना कभी न इसकी लत 
यह जीवन में लाती कष्ट 

अपनाना जीवन में सही मार्ग
बीते शराब जब लोग बाग
 ✍️✍️  संदीप कुमार ✍️✍️
        ( रजौली, रायबरेली )

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