मैं भी लेख लिखने लगा


मन मे था जो अंतर्द्वन्द वो धीरे से हटने लगा 
अब मै भी लेख लिखने लगा


हैं लोग भोग  मे  अस्त  व्यस्त
भ्रमजाल में फंसे हैं जबरजस्त

छल कपट मे लगाते हैं वो गस्त
रहते उसी  मे  दिन रात मस्त

चुगल- खोर और जलन खोर से
नाता मेरा अब टूटने लगा
अब मैं भी लेख लिखने लगा


कुछ हैं मित्र और रिस्तेदार
बात-बात पे दिखाते औकात

अपने को कहते हैं लंबरदार
बड़ा कस्ट देता हैं उनका व्यवहार
उनके ऐसे बर्ताव से  दामन उनसे छुटनें लगा
अब मै भी लेख लिखने लगा

घूम- घूम के  दुनियाँ देखा
जीने का कुछ अलग सरीखा

पवन का आया एक  झरोखा
मुझको दिया पुरस्कार अनोखा

इस्थिर हो जावो ,आके मुझसे कहने लगा

अब मै भी लेख लिखने लगा 
हाँ! मै भी लेख लिखने लगा
 ✍️✍️ संदीप कुमार✍️✍️
    

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