लट मरुवा

*"वह देखो जा रहा*" 

तिराहे में बात कर रहें ,
झगडू और मगरुवा

वो देखो जा रहा गांव का लतमरुवा

देशी पव्वा लिए हुवे
कालर ऊपर किए हुवे

लड़खड़ा रहें कदम 
संभल नहीं रही चाल
बालों को नोच रहा , खुजला रहा गाल

मुंह में मक्खी चल रहीं,
बह रही है लार
        छी छी!
पैंट में ही छोड़ दी 
उसने पेशाब की धार

       .
अरे अरे! वो गिर गया ,
काट रहें गोबर के गुजूवा

वह देखो जा रहा गांव का लतमरुवा

नव युवकों, बच्चों के दे रहा  गाली
राजनीति मेरी चौपट कर देगें
क्या भीख मागूंगा लेके थाली

देखो देखो काकी को देखो,
कह रहीं उसको भाडूवा

वह देखो जा रहा गांव का लत मरुवा

😆

यह कविता सफेदाय नेता व उनके टट्टूवों को समर्पित
😃😃😜

✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️

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