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बोलना ही पड़ेगा
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लिखना ही पड़ेगा पुरानी, घिसी-पीटी रीतियों पर उनसे उपजे अत्याचारों पर मानव के टूटते व्यवहार पर लिखना ही पड़ेगा। सोचना ही पड़ेगा क्यों बढ़ी है दिलों में दूरियाँ क्यों सताती है सबको मजबूरियाँ क्यों खो रहे हैं हम संवेदनाएँ सोचना ही पड़ेगा सुनना ही पड़ेगा अपनी आलोचनाएँ, अपने दोष जब खुद में हों कमियाँ तो उसे स्वीकारना ही पड़ेगा सुनना ही पड़ेगा आवाज़ उठानी ही पड़ेगी अत्याचार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के विरुद्ध और देश में पल रहे असामाजिक तत्वों के विरुद्ध आवाज उठानी ही पड़ेगी अगर चाहिए हमें वैज्ञानिक सोच आदर्श जीवन सुशिक्षित नागरिक तो बोलना ही पड़ेगा, असत्य के विरुद्ध झूठे प्रोपेगंडा के विरुद्ध हमें बोलना ही पड़ेगा ✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️ ( रजौली, रायबरेली )
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चला जा. रहा हूँ, चला जा रहा हूँ ज़िंदगी का सफर तय किए जा रहा हूँ कुछ नए अनुभव लेकर कुछ नई सीख लेकर कुछ नया कर दिखाने का, जुनून दिल में लेकर जटिल राहों पर आगे बढ़ा जा रहा हूँ चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ ज़िंदगी का सफर तय किए जा रहा हूँ इस सफर में कभी ऐसे भी मोड़ आते जिन्हें चाहकर भी हम नहीं भूल पाते इंसान क्यों करता है इतना दिखावा बेबस दिलों से क्यों करता छलावा सदियों से यही चक्र देखता आ रहा हूँ चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ ज़िंदगी का सफर तय किए जा रहा हूँ निकला एक दिन खुशियां ढूँढ़ने के लिए सोचा, मिलेंगी कहां यह खोजने के लिए बहारों से पूछा, घटाओं से पूछा खिलखिलाती हुई लताओं से पूछा मगर हर तरफ सन्नाटा न कोई जवाब किससे करूं मै अब यह सवाल अचानक जोरो से बिजली है कड़की वृक्ष की सूखी, गिरी सारी लकड़ी गड़गड़ाहट से बादल फटे हुई ओला वृष्टि सब शान्त हुआ तो पेड़ पे गई मेरी दृष्टि मानो पेड़ कह रहा हो है सब कुछ यहां अनिश्चित तुम क्यों हो इतने चिंतित अपने अंतःकरण में पहले तुम झांको को क्या है सही गलत यह तुम आंको दुख का कारण खुद जान जानोगे दुख का निवारण खुद कर पाओगे पेड़ की इस बात से दिल को सुकू...