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पीते शराब जब लोगबाग

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दारू  जब   जाती है    अंदर मचाती है अस्थियों में  बवंडर  रक्त संचार हो  जाता है   तेज किसी बात का नहीं रहता खेद बाते करती है  परछाई बाहर आती  हर सच्चाई कभी रोते कभी हंसते है अपनी बीती व्यक्त करते है अलापते है एक नया राग पीते शराब जब लोग बाग   प्रेमी को ,प्रेमिका जब आती याद   पीते दुख में करते करते विलाप  प्यार  में   मिलता है क्यों  धोखा  क्यों  मैने  पह  पहले नहीं  सोंचा  पीते  है  मित्र  होते  आनंदित  ठहाकों से माहौल करते सुगंधित पीने  के बाद सब हो जाते धूरन्धर लज्जा  भय  आते  नहीं  अंदर   कुछ पीके  पड़े कीचड़ की ,गलियों में  खुद को महसूस करते पुष्पों की वादियों में  करते है वो जोरों से गर्जन  कुत्ते उन पर करते मूत्र विर्सजन कीचड़ में लथपथ लगते जैसे नाग पीते  शराब  जब  लोग  बाग  सफेदाय नेता पीते शाम को  सोडा डाल के बनाते जाम को गांव में ...

चमचें

हैं इस जहां में भांति भांति के चमचे चमचों की बताता हूं आज मैं प्रवृत्ति चाटुकारिता, दोगलेपन की रहती आवृत्ति सिद्धांतहीन, स्वाभिमान से रहते कोसों दूर चाटुकारिता में ये बनते हैं समाज में मशहूर चमचे लगाते हैं नेताओं पे मस्का, तलवे चाटने का लग जाता है चस्का चमचे औरों से थोड़ा रहते ज्ञानवान  अंदर रहता इन पे  अभिमान चाटने में हो जाते हैं ये माहिर, दिमाग से ये होते हैं बिल्कुल जाहिल  अपने स्वार्थ के लिए कहीं तक गिर जाते हैं लोगों को मूर्ख बना के अपना उल्लू सीधा कर पाते हैं सफेद नेताओं के पास ये प्रसन्नता से जाते हैं  अपने समाज की कमजोरी नेताओं को बताते हैं  नेता लोग समाज को आपस में लड़वाते है चमचे इसका फायदा बखूबी से उड़ाते है  समाज को दीमक की तरह हैं खोखला करते जिसका हर्जाना लोग हैं भरते मन करता है उड़ा दूं ,लगा के कनपटी पर तमंचे हैं इस जहां में भांति भांति के चमचे हमको एक वाक्य  मस्त दिखा  मान्यवर कांशीराम साहब ने क्या खूब लिखा जिनको जवानी में चमचा गिरी की लत लग जाती है  उनकी सारी जिंदगी दलाली में गुजर जाती है  ✍️✍️संदीप कुमार✍️✍️   ...

गांव

है खूबसूरत रजौली मेरा गांव ऊपर हार हो या हो तरी हार  है अपने गांव से हमे बहुत प्यार बहुत ही मनमोहक है यहां का सौंदर्य यहां की जमीन पे हमे है अदार्य  देख के यहां के परिदृश्य को बदलते मेरे है भाव है खूबसूरत रजौली मेरा गांव बंदरेश्वर मैदान में बच्चे हैं खूब खेलते चांदातालाब में हैं नवयुवक तैरते रहते  बारिश में यहां घोंघे,केकड़े भी मस्ती करते सर्प बिच्छू ग्वाह भी सैर पे हैं निकलते पपिहा खुशी से है गीत गाता  मयूरों का नृत्य मन को खूब भाता सुकून देते है यहां पेड़ों के छांव  है खूबसूरत रजौली मेरा गांव यहां के लोग भी हैं खूब प्यारे  कुछ हैं दिलखुश और हैं कुछ न्यारे यहां की राजनीति में है नया अंदाज सभी पहनना चाहते हैं जीत का सरताज सभी एक से बढ़कर एक लगाते हैं दांव  है खूबसूरत रजौली मेरा गांव सभी को अपनी मातृभूमि में मिलता सुकून कुछ नया कर दिखाने में रहता जुनून भ्रमण करो कहे जितना थकते नहीं पांव है खूबसूरत रजौली मेरा गांव          संदीप कुमार

क्या हुआ इन लोगों को

क्या हुआ इन लोगों को और ये क्यों हुआ  क्यों बदल गई है लोगों की सोच  क्यों नहीं आता है अपने पे रोष  क्यों नहीं उठता है  इनके जहन में प्रश्न क्यों किसी के घर टूटने पर मनाते  हैं ये जश्न  क्यों धर्म की राजनीति में  फंसे हुए है शिक्षा महंगाई बेरोजगारी के मुद्दों से क्यों  हटे हुए है क्यों धर्म खतरे में आता है  बार-बार  क्यों हर बार मानवता होती है तार तार गरीबों पर क्यों नहीं बरसती है कोई दुआ  क्या हुआ इन लोगों को और ये क्यों हुआ  क्यों किसी के छूने से कुछ लोग हो जाते हैं आपवित्र क्यों नहीं झांकते हैं वे अपना चरित्र  क्यों किसी को मूछ रखने पर पड़ता है जान गवाना  क्यों सरकार की कमी को निकालने पर पड़ता है जेल जाना  क्यों ग्लोबल हैंगर इंडेक्स में भारत है सबसे नीचे क्यों विश्व की टॉप यूनिवर्सिटी में भारत रह गया पीछे क्यों महिलाओं की सुरक्षा में होता है मुंह धुवां  क्या हुआ इन लोगों को और ये क्यों हुआ  आखिर कब तक नफरती राजनीति में उलझे रहोगे  एक दूसरे को नीचा दिखाते रहोगे   समाज को आइना दिखाना है ह...