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वीर शहीदों को नमन

वीर शहीदों को करता हूँ नमन है इनके बदौलत  शांति और अमन वीर शहीदों को करता हूँ नमन  अग्रेजों के गुलाम थे, सहते थे अत्याचार  चुप थे देख के दरिंदगी, थे बहुत लाचार आजादी  का  बिगुल वीरों   ने  बजाया हर भारतीयों के अंदर स्वाभिमान जगाया सुभाष जैसे वीरों ने, अपने प्राण गवाएं दे के बलिदान अपनी आजादी हमें दिलाएं अपनी इस मात्र भूमि में, रहेंगे हमेशा वें अमर वीर शहीदों कों करता हूँ मै नमन  महापुरुषों ने किया भारतीय संविधान को अंगीकार समता, समानता पर आधारित ,मिलें सबको सम्मान खत्म हुवा भारत मे पहले का राजतंत्र मनायेंगे हर साल 26 जनवरी को गड़तंत्र करेंगे याद वीर शहीदों को ,गाएंगे गीत और भजन वीर शहीदों को करता हूँ मै नमन आगे ले जाएं देश को, हो सभी कटिबद्ध यथा संभव करें देश की सेवा सभी हों प्रतिबद्ध उत्कृष्ट कार्य करने मे सबकी बड़ी हो लगन वीर शहीदों को करता हूँ मै नमन

राम आयेंगे?

राम आयेंगे?  क्या सच मे राम आयेंगे चली है चर्चा जो गाँवों में शहरों के गलियारों में   टी. वी. न्यूज अखबारों में माहौल बना हैं राम नाम का राम मंदिर है सबके काम का मान बढ़ाना हैअयोध्या धाम का  आकर वहाँ राम! क्या सच मे दर्शन दिखाएंगे क्या सच मे राम आयेंगे मै!पूँछ रहा हूँ कोरोना काल मे क्यों नहीं आए मरने वालों की चीख क्यों सुन नहीं पाए नगां किया मड़ीपुर मे स्त्री को,  आ करके क्यों नहीं बचाये आ के वहाँ, क्या! और कैसे वो बतायेंगे क्या सच मे राम आयेंगे क्या आने से उनके, बेरोजगारी मिट जायेगी भुखमरी, गरीबी दूर हो जायेगी शिक्षा, जागरूकता बढ़ जायेगी टूटी हुई झोंपड़ी मे क्या नये फूल खिल जायेंगे क्या सच मे राम आयेंगे गर हुआ ऐसा तो, हम भी घी के दीप जलायेंगे क्या सच मे राम आयेंगे

मैं भी लेख लिखने लगा

मन मे था जो अंतर्द्वन्द वो धीरे से हटने लगा  अब मै भी लेख लिखने लगा हैं लोग भोग  मे  अस्त  व्यस्त भ्रमजाल में फंसे हैं जबरजस्त छल कपट मे लगाते हैं वो गस्त रहते उसी  मे  दिन रात मस्त चुगल- खोर और जलन खोर से नाता मेरा अब टूटने लगा अब मैं भी लेख लिखने लगा कुछ हैं मित्र और रिस्तेदार बात-बात पे दिखाते औकात अपने को कहते हैं लंबरदार बड़ा कस्ट देता हैं उनका व्यवहार उनके ऐसे बर्ताव से  दामन उनसे छुटनें लगा अब मै भी लेख लिखने लगा घूम- घूम के  दुनियाँ देखा जीने का कुछ अलग सरीखा पवन का आया एक  झरोखा मुझको दिया पुरस्कार अनोखा इस्थिर हो जावो ,आके मुझसे कहने लगा अब मै भी लेख लिखने लगा  हाँ! मै भी लेख लिखने लगा  ✍️✍️ संदीप कुमार✍️✍️     

ठंडी के दिन

जब- जब आती! है ये ठंड  कंपित  हो जाता मेरा कंठ किट- किट करते, हैं ये दांत मोटी हो जाती  दोनों आंत   मुँह से स्पष्ट न निकले बात कोहरे से  दिन भी लगता रात जब जब आती है ये ठंड कूलर पंखे हो जाते बंद खिली धूप देती आनंद जब जब आती है ये  ठंड  लकड़ी के जलते, छोटे खंड भुनते आलू और सकरकंद जब जब आती हैं, ये ठंड कहता है मेरा अंतर्मन सन्दु, लिखो लेख जीवन प्रयन्त जब आती है ये ठंड हर्षित होते है बच्चों के मन